जहाज़ी कहूँ, लेखक कहूँ या कहूँ गाँव का छोरा,
वीकेंडवाली कविताओं से मोह रहा है मन सबका थोड़ा-थोड़ा,
भाषा की सादगी है और कल्पनाओं की गहनता,
ज़िंदगी का हर रंग समेटे लब्ज़ में भावों की है प्रधानता।
समंदर में जहाज़ और कागज पर
ख़यालों की लेखनी चलाते रहिए,
इंडियापा, जहाज़ी, वीकेंडवाली कविता से
सुर, लय और ताल मिलाते चलिए।
आशीष है जन-जन का,
भाषा का मान बढ़ाते चलिए,
श्वेत मन में विनोदी भाव से मुस्कराते चलिए ,
शुभाशीष, शुभाशीष और शुभाशीष आँचल में भरते रहिए।
अरुणा सिंह का ढेर सारा आशीर्वाद।