Indiyaapa (Hindi Edition)

इस मोबाइल के दौर में, जब हर भोपाल, बनारस और पटना, मुंबई हो जाने को बेताब हैं, चंद सालों पहले की कहानियाँ ‘उन दिनों की बात’ होती जा रही हैं। यह सचमुच उन्हीं दिनों की बात है, जब चित्रहार में सबसे ज्यादा गाने कुमार शानू जी गाते थे, IIT-JEE क्रैक करने वाला लौंडा मुहल्ले में ऐसे देखा जाता था जैसे वह चाँद से लौट के आया हो, एक लड़के के लिए लड़की को देखने से लेकर हाथ छू लेने तक का सफर एवरेस्ट की चढ़ाई से कम नहीं था। अब यार, हर लौंडा कोई DDLJ का शाहरुख खान तो है नहीं कि इंडियन सियापों के अमरीश पुरी से लड़ जाये। पर जब हमारी कहानी के शुक्ला जी, इस इंडियापे से सींघ लड़ा ही रहे हैं, तो सही-गलत का फैसला वक्त के हाथों छोड़, आप भी उनकी इस कहानी का मजा लीजिए। इंडियापा लेखक की पहली किताब है। पहली किताब, पहले प्यार की तरह बस हो जाती है, हमें ज्यादा सोचने का वक्त नहीं देती। इसलिए इसे फुर्सत से पढ़िएगा, ट्रेन के किसी लंबे सफर की फुर्सत, एग्जाम के बाद वाली रात की फुर्सत, या फिर सर्दियों की धूप में औंधे मुँह पड़े रहने की फुर्सत… उम्मीद है कि यह कहानी आपको फुर्सत की उन्हीं पुरानी गलियों तक पहुँचाने का एक रास्ता बनेगी।

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