डा० शुचि महरोत्रा

विनोद जी की सरल भाषा की छेनी ने प्रवासी जीवन के उन अबोध अनकहे पहलुओं को तराशा है, जो शायद हर व्यक्ति महसूस तो करता है पर कभी व्यक्त नहीं कर पाता है। चाय की चुस्की जैसे इनकी रचनाएँ जीवन की आपाधापी में फँसे पथिक को पेड़ की छाया जैसा आनंद देती हैं।

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