मान्या व अभिषेक

जैसे जहाज पानी में बहता चला जाता है, वैसे ही विनोद जी की कविताएँ पढ़ते हुए मन भावनाओं के समंदर में बहता चला जाता है। जैसे जहाज कैप्टन के बिना अधूरा है, वैसे ही कविताएँ विनोद जी की कलम के बिना अधूरी हैं।

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