01.Feb.2025

Dear X,

मैं यह खुशफ़हमी पाल लेना चाहता हूँ कि अब तुम्हे हर वीकेंड, मेरी इन चिट्ठियों की प्रतीक्षा रहा करती होगी। इन चिट्ठियों में , मैं ऐसी कई बातें लिखना चाहता हूँ, जो तुमसे मिलकर कहना मुमकिन न था।

हमारे कहे हुए शब्द कर्पूर की तरह झट से वायुमंडल में विलुप्त हो जाते हैं किंतु लिखे हुए शब्दअगरबत्ती की तरह देर तलक अपनी खुशबू बिखेरते हैं । ये शब्द जिन्हे तुम कई दफा पढ़ सकते हो, चलते फिरते उनके बारे में सोच सकते हो, और उन पर उँगलिया रखकर उन्हें महसूस कर सकते हो।

 जिंदगी की टायर धकियाते धकियाते , मैं जिस जगह पहुँचा हूँ , वहां इन दिनों चीनी नव वर्ष मनाया जा रहा है। यहाँ का सबसे बड़ा त्योहार। यूँ कहो कि केरल का ओणम, तमिलनाडु का पोंगल, महाराष्ट्र की गणेश चतुर्थी, बंगाल की दुर्गा पूजा या फिर गोकुल बरसाने की होली। ये पर्व ही तो है जो इस रोबोटिक जीवन में उत्साह भर देते हैं। इन दिनों यहाँ भी चारो तरफ लाल रंग की रोशनी में नहाया परिदृश्य है । सजावट और उत्साह का माहौल देखकर दिल में ख़ुशी की लहरें अपने आपहिलोरे मारने लगती है।

फिर सोचता हूँ कि आखिर खुश होने के लिए हमें पर्व की ज़रुरत क्यों ?क्या जीवन में ख़ुशी इतनीकम बची है कि सिर्फ त्यौहार में नसीब हो ? बचपन में तो ऐसा नहीं था।  आह ! समृद्धि का पीछा करते हुए कहाँ से कहाँ आ गए। तराज़ू के एक पलड़े पर गुस्सा, नफरत, पछतावा और ना जानेकितना बोझा लाद दिया कि खुशी वाला पलड़ा बहुत हल्का हो गया।

इतना बोझा ढोने की क्या ज़रूरत थी? शायद ठीक से ” लेट गो ” नहीं करना आया।

मैं यह भी जानता हूँ कि शक्ति और सत्ता के पायदान में जो हमसे ऊपर बैठा है, उसने जब मौक़ा मिला शोषण किया। युद्ध में जीत हार राजाओं की हुई और मारे सैनिक गए । सरकारों की एक नीति के बदलाव का दंश आम आदमी ने भुगता, देश के प्रधान को फ़र्क़ नहीं पड़ा । इसलिए तुमने घर हो या बाहर , जब कभी भी अपना शोषण होते हुए देखा और स्वयं को विरोध न कर पाने की हालत तक असहाय पाया, वह सारा गुस्सा सीने में छुपाये रहे।

मैं जानता हूँ कि जीवन के इस सफ़र में न तुमने जाने कितने कितने रिश्ते बनाये होंगे , उन रिश्तों को समय और ऊर्जा का खाद पानी दिया होगा । फिर जब उन्हीं रिश्तों ने ज़रुरत के वक्त मुँह मोड़ लियातो भीतर एक वैराग्य होना लाज़मी है।  लोग आराम से मूव ऑन कर जाते होंगे पर तुमसे नहीं हुआ। ऐसे कई रिश्तों के बारे सोचते हुए कच्ची नींद की कितनी स्याही आँखों के नीचे पोत ली है, तुमने ।

तुम्हारे भी कुछ बेहद करीबी लोग थे जिनके बिना इस जीवन की कल्पना भी न की जा सकती थी।  वे हमेशा के लिए तुमसे दूर चले गए।  तुमने लाख कोशिश की पर नियति के आगे असहाय बने रहे। उन करीबी लोगों के चले जाने के बाद तुमने कुछ दिनों के लिए ईश्वर से भी कट्टी ले ली थी। पर क्या तुम उनका जाना रोक पाये? आज भी बाथरूम में नल चलाकर, या तकिये के सिरहाने रोने से मन की टीस कम हुई? आख़िर क्षणों में उनके पास न होने का पछतावा समाप्त हुआ?

तुमने कुछ भी नहीं छोड़ा। सारा गुस्सा, नफ़रत, पछतावा, दुःख अपने सीने पर लादे आज भी घूम रहे हो । और तुम्हे क्या लगता है कि यह सिर्फ तुम्हारा किस्सा है ? यह दुःख पछतावा, क्रोध, नफ़रत हमसबकी ज़िंदगी का हिस्सा है।

कभी सोचना कि उम्र के साथ यह सब ढोते- ढोते तुमने यात्रा को कितना मुश्किल बना दिया है। खुश रहना तुम्हारे लिए कभी नैसर्गिक क्रिया थी और अब खुश रहने के लिए त्योहारों की प्रतीक्षा करते हो।

किसी रात खामोशी से बैठकर सोचना । यह सब इसलिए तुम “ लेट गो” नहीं कर पाए क्योंकि तुमने अपने अस्तित्व को बहुत तरजीह दी है। तुम्हें लगता है यह सब “ तुम्हारे” साथ भला कैसे हो सकता है। कभी सोचना कि कौन हो तुम? तुम्हारी औक़ात क्या है ? इस अखिल ब्रह्मांड में पलकों के झपकने भर की भी समयावधि तुम्हारे नाम नहीं, समंदर में एक बूंद जैसी औक़ात नहीं , फिर इतना कुछ ढोने की जरूरत ही क्या ?

 जब सचमुच तुम्हें लगेगा कि जीवन क्षणभंगुर है, शायद   ” लेट गो “करना आसान हो जायेगा।  न तुम महत्वपूर्ण रहोगे , न जिस चीज़ को पकड़ कर रखा है, वह महत्वपूर्ण रहेगा । अगर कुछ जरूरी लगेगा तो यह गुजरता हुआ जीवन , जो गुज़र ही जाएगा । तुम्हारे प्रसन्न होने की प्रतीक्षा नहीं करेगा ।

हमने नाहक ही खुद को इतना महत्व दे रखा है। जीवन उत्साह के साथ जीने के लिए है, हर अनुभव को महसूस करने के लिए है। इस समाज के बनाये सफलता के मापदंड में कहा पहुंचते हैं , यह शायद आप के वश में न हो किंतु आप कितना खुश रह सकते हैं, इस पर आपका पूरा हक होना चाहिए । किसी पुराने रिश्ते, किसी पुरानी घटना या किसी के चले जाना इतना बड़ा नहीं हो जाना चाहिए बाकी के जीवन पर भारी पड़े।

कई रिश्ते मुकम्मल नहीं होते,
कई ख्वाहिशें पूरी नहीं होती,
इन चीजों के बिना भी,
ये जिन्दगी अधूरी नहीं होती,

तो जो कुछ मिला उसका
तहे दिल से सम्मान करो,
जो नहीं मिला उसे जाने दो,
दूर से सादर प्रणाम करो….


वीकेंड वाली चिट्ठी

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