Dear X,
हम सबका एक समय होता है और हम सब उस समय में कितने बुद्धिमान या सुंदर या शक्तिशाली होते हैं। पर कमबख्त , समय की यह सिन्दूरी नदी हमेशा बहती रहती है। और हर क्षण उसके साथ बहते रहते हैं हम और बहती जाती है हमारी बुद्धिमत्ता, सुंदरता और शक्ति।
साफ़ रंग, तेज़ गणित या फिर लम्बा कद चौड़ी छाती, यह सब क्या हमारी इच्छा से हमें मिलता है। मिल रहा होता तो हम एक ही सांचे से निकल आते। और जो चीज़ हमारी इच्छा से हमें न मिला हो उस पर कैसा अभिमान या कैसी कुंठा। समाज का तो काम है , सुन्दर चीज़ों को अच्छा मानने का ,वरना एक सांवले रंग की लड़की की शादी में पिता के माथे पर बल कहाँ आते। एक कमा रहे लड़के की थाली में घी का थोड़ा ज्यादा अंश क्यों उड़ेल दिया जाता। समाज ज़िद्दी है, जैसा चल रहा है, वैसा ही चलाये रखना चाहता है। अपनी साज़िश में उसने भगवान् तक को शामिल कर लिया है। कान्हा तक को गुनगुना पड़ा था कि ” राधा क्यों गोरी मै क्यों काला “
सिर्फ प्रेम है, जो समाज़ की आँखों में किरकिरी बना रहता है। समाज के बनाये दायरे से अलग , किसी को किसी से हो सकता है, किसी से कुछ भी करवा सकता है । आप जिसे प्रेम करते हैं, उसके रंग रूप में कितने ही परिवर्तन आते रहे, आपका प्रेम वहीं टिका रहता है। तभी तो पंचायत के प्रधान जी जब नीना गुप्ता को नयी साड़ी में मुस्करा कर देखते हैं तो वो गुस्से में भी निखर जाती हैं। तभी तो प्रह्लाद चा अपने बेटे राहुल के गांव में रहते हुए पूरा वक्त उसके साथ ही बिताना चाहते हैं। उन्हें नहीं पड़ना किस पचड़े में, उनके लिए राहुल के साथ गुज़रा समय किसी भी उपप्रधान के पद से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
और सच भी तो यही है। प्रह्लाद चा ने समय बिताया , शायद उनको पता था , कईयों को नहीं पता होता कि राहुल कब चला जायेगा। आने जाने का खेल ही तो है, जिंदगी। हम जिस समय की धारा में हैं, एक दिन सबको निकल जाना है। अच्छा है कि इंसान भले ना दे, स्मृतियाँ जीवन भर का साथ देती हैं। किसी घर की स्मृति, किसी बात की स्मृति, किसी सुन्दर गीत की स्मृति, किसी खामोश लम्हे की स्मृति और आखिर में एक ऐसी मनहूस तारीख की स्मृति जिसके आगे सारी खुशियों ने घुटने टेक दिए थे। वैसे ,सफर चाहे जितना कठिन हो, इंसान काट लेता है, कई दफा शून्य में निहारते तो कई दफा किसी प्रिय की स्मृति में डूबे उदास गीत गुनगुनाते। इसलिए किसी से मिलते, किसी से बात करते, मन में यह भय ज़रूर रखना कि यह मुलाकात आखिरी भी हो सकती है। शायद तुम्हारे बर्ताव में नरमी आ जाये और यह दुनिया ज्यादा सहज हो जाये ।
वीकेंड वाली चिट्ठी