Dear X,
एक और साल गुज़र गया। अच्छा-बुरा जैसा भी था, गुज़र गया। साल दर साल बस एक ही बात पुख्ता होती जा रही है कि सबकुछ गुज़र जाता है। मन में गुज़र जाने का भाव आते ही सारी उत्तेजनाएं, दौड़-भाग, उत्सुकता, उत्साह और विछोह , भावनाओं की ये सारी पेंगे बेमानी सी लगने लगती हैं । मजेदार बात यह है कि वो सारी बातें जो कभी अति महत्वपूर्ण हुआ करती थी, आज मुड़कर देखने पर इनका महत्त्व नगण्य सा लगता है। फिर ख़याल आता है कि एक दिन इसी तरह हम भी गुजर जायेंगे। तो क्या सचमुच इस समय हमारे साथ घट रही रही कोई भी चीज़ इतनी महत्वपूर्ण है जितनी हमें लग रही है। पहले प्रेम की तेज़ धड़कन, परीक्षा में प्रथम आने का गर्व, महँगी चीज़ों को हासिल करने की दर्पनुमा ख़ुशी, किसी प्रियजन के छोड़कर चले जाने का गहरा अवसाद ।
और अगर यही सच है, तो किस बात की आपधापी, किस बात की ज़ल्दबाज़ी। ट्रैन में शांत बैठकर ही तो हम ठीक से खिड़की के बाहर का नज़ारा देख पाते हैं। अगर हम समय की एक्सप्रेस ट्रैन में यात्रा भर कर रहे हैं, तो क्यों न इस जीवन को ठहर कर जिया जाए। भागते दौड़ते भला जीवन की अनुभूति कहाँ ?
ठहर कर जीवन को महसूस करना, क्या सचमुच इतना आसान है जितना सुनने में लगता है ? खुद को स्लो डाउन करने के लिए, थोड़ा वक्त चाहिए होता है। क्या वक्त है, हमारे पास। याद करना कि तुमने आखिरी बार कब किसी नदी में पैर डालकर पानी की ठंड को अपने रोम-रोम तक महसूस किया था । तुमने कब फुर्सत से गर्म चाय का प्याला लिए कोई ऐसी किताब पढ़ी थी कि लगा हो लेखक के साथ संवाद चल रहा है। रोजमर्रा की जिंदगी से मोहलत लेकर, फोन को स्विच ऑफ करके, तुमने आखिरी बार कब किसी पहाड़ी पर औंधे मुंह लेटकर धूप सेंका था।
सुनने में यह सारे काम कितने आसान से लगते हैं किन्तु विडम्बना यह है कि यह सारी चीज़ें इस उपभोक्तावादी जीवन में किसी काम की नहीं। नदी में पैर डालने से अच्छा एक अच्छा सा सोशल मीडिया पोस्ट डाल दें ताकि ज्यादा लोग पसंद करें और शायद इज़्ज़त में इज़ाफ़ा हो। दूध वाली चाय पीने से अच्छा है कि ब्लैक कॉफी पी जाये तकि फैट बढ़ने का डर ना रहे। मन की किताब पढ़ने से अच्छा एक ऐसी किताब पढ़ी जाये जो सफलता के लिए ” क्या करें और क्या न करें” की घुट्टी पिला सके। पहाड़ों पर धूप सेंकने की बजाय किसी ऑफिस के मीटिंग रूम की गहमागहमी में वक्त गुजारने पर शायद प्रमोशन के आसार बन जाएं । इसीलिए तो वो आसान सी चीज़ें करने का वक्त नहीं है।
पर सोचिये, यह सारी प्रतियोगिता और भाग दौड़ करते हुए भी तो जिंदगी को गुजरने से नहीं रोक पाएंगे। जीवन सिर्फ एक है, और वह भी आपका है। इसे कैसे गुजारना है, यह फैसला भी आपका ही होना चाहिए । अगर ये बातें उचित लगें तो इस नए साल में थोड़ा स्लो डाउन होने की कोशिश करना, खुद को समझने की कोशिश करना, साँसों को महसूस करते हुए जीने की कोशिश करना ।
नरेश सक्सेना जी ने संकेतों में ही कितनी बड़ी कही है :
पुल पार करने से,
पुल पार होता है,
नदी पार नहीं होती,
नदी पार नहीं होती,
नदी में धँसे बिना,
वीकेंड वाली चिट्ठी