26. Apr .2025

डिअर X,

मेरे सामने एक छोटी सी नदी बह रही है। इसका पानी मुझे बहते हुए समय की याद दिलाता है। और इस पानी का जो उतार चढाव है, इस नदी की जो लहरें हैं, वह मुझे अच्छे बुरे तमाम तरह के समय की याद दिलाती है। बारिश के दिनों में यह नदी यूँ बहती है, जैसे सारे कछार तोड़ देगी। कभी पानी इतना शांत रहता है जैसे मन का दर्पण हो। कभी स्थिर पानी गंदले रंग का हो जाता है, जिसकी सफाई करनी होती है। यह चक्र बिल्कुल हमारे मन की तरह है, जो कई भावनाओं से जूझता रहता है। 

आज इस नदी का पानी गंदले रंग है।  कितना कुछ कूड़ा करकट इसमें बह आया है। यह नदी का दोष नहीं, इसमें उसके चारों तरफ की परिस्थितों का दोष है।  पर इस कूड़े को साफ़ करना ज़रूरी है।  गंदले रंग का पानी मुझे तमाम भावनाओं में ” क्रोध” की याद दिलाता है । उम्र बढ़ने के साथ यही समझ आया कि ” क्रोध ” सबसे बेकार किस्म कि भावना है। कई दफा  इंसान उन परिस्थितियों से हार जाता है जो उसके बस में नही।  जीत की अपेक्षा भी उसी ने पाली होती है सो निराशा स्वाभाविक है।  निराशा एक सुई की तरह देह को गोदते हुए भीतर एक खीझ पैदा करती है। और खीझ ” क्रोध” को जन्म देता है।  हम न यह स्वीकार करते हैं कि जीत न भी तो क्या हुआ , हम न यह स्वीकार करते हैं कि जो हुआ वह मेरे वश में नहीं था।  इस हालात में जब हमें कोई रास्ता नहीं दिखता तब क्रोध की भावना का प्रवेश होता है।  वर्षों पहले हम सब पशु थे। हमने मानसिक विकास किया, भावनाओं को  काबू में रखना सीखा। मुझे लगता है क्रोध मनुष्य को पशुता को और ले जाता है। उस क्रोध के वश में हम जाने कितने गलत शब्द, यह गलत काम कर देते हैं जिसका पछतावा आजीवन रहता है। 

हम सबने जीवन में क्रोध के वशभूत कुछ ऐसे कटु शब्द कहें होंगे, जिनका मलाल जीवन भर रहेगा। हम सबने कुछ ऐसे काम किये होंगे, जो होशो हवश में कभी ना करते और जिनका परिणाम हमेशा सालता रहता है।

इंसान भी अपनी परिस्थियों के हाथ की कठपुतली है। इसलिए स्वभावतः क्रोधी होना या ना होना हमारे वश में नहीं। सिर्फ क्रोधी स्वाभाव पर गर्व न महसूस करें, इतना ही काफी है। कई बार क्रोध को हम वीरता से जोड़ लेते हैं। वीरता और क्रोध में जमीन आसमान का अंतर है। वीरता में मन शांत है, क्रोध में मन में उफान है। क्रोध वीरता नहीं बल्कि कमज़ोरी है। इसलिए इसके कारण को समझने की ज़रुरत है। 

कितनी खाहिशें हैं जो लाख कोशिशों के बावजूद पूरी नहीं होंगी। इस जीवन में कितना कुछ न मिला पर क्या जीवन में कुछ अंतर आया? कितने रिश्ते मुकम्मल नहीं हुए। जिनसे उम्मीद थी, उन्होंने नाउम्मीद किया। जब सबसे ज्यादा ज़रुरत थी, तब हाथ छोड़ दिया। आज जो बचे हैं या जो चले गए, उससे क्या जीवन में कुछ अंतर आया? इस जीवन में जीते रहने से ज्यादा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है। आज जो चट्टान है उसे कल मिटटी का चूरा होना ही है। यही काल की नियति है जो मेरे और तुम्हारे अस्तित्व से ज्यादा महत्वपूर्ण है। 

जहां तक हमारे काम करने की बात है, हम उसी का नियंत्रण कर सकते हैं, जो हमारे वश में है। इसलिए जो वश में माहि उसकी क्या चिंता? ध्यान से सोचें तो हमारे वश में बहुत कम है, इसलिए हमें बहुत काम चीज़ों की चिंता होनी चाहिए। बाहर की परिस्थितियां कैसी हैं, दूसरों का व्यवहार कैसा है, इन सब पर हमारा कहाँ वश है? 

क्रोध आना स्वाभाविक है। इस बात का हमेशा ध्यान रहे कि कोई भी निर्णय, शब्द, काम क्रोधः की अवस्था में न लिए जाएँ।   जब आये तो कुछ देर के लिए वहां से दूर हो जाएँ। न दूर हो सकें तो चुप हो जाएँ। क्रोध अग्नि की तरह क्षणिक है। समय की हवा में अपने आप नष्ट हो जाती है। क्रोध के अग्नि में ऊर्जा होती है।

 अगर शांत मन से क्रोध के कारण को ढूंढेंगे, अपने भीतर ज़रूरी बदलाव करेंगे तो यह ऊर्जा एक बड़ा मुकाम भी हासिल करा सकती है। इसलिए इस ऊर्जा को चिल्लाकर मत बर्बाद करिये।  भावनाएं जीवन का अभिन्न अंग हैं। उनके बिना रस नहीं। जैसे पानी की लहरों की अठखेलियां ही नदी के बहाव को सुन्दर बनाती हैं। किन्तु क्रोध एक ऐसी भावना है जो नदी में आये गंदले पानी की तरह है। वह आये तो वक्त देकर, उसे छानकर निकाल दें। क्रोध सिर्फ दुःख देगा। मैं जानता हूँ कि सबके लिए यह आसान नहीं।  पर जीवन भी कहाँ आसान है।  मुझे कोई दीखता है जिसका स्वयं के क्रोध पर नियंत्रण नहीं तो मुझे लगता है उससे बड़ा दीं दुखी कौन है।  देह से मनुष्य होते हुए भी मन से पाशविकता के करीब रह गया।        

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