डिअर X,
आज की सुबह ठंडी हवाओं और तेज़ बारिश साथ लेकर आई है। पेड़ अपने पत्तों को ऐसे झटक रहे हैं जैसे कोई बाथरूम से निकलकर अपने बालों को झटक रहा हो। लगातार हो रही रिमझिम बारिश के कारण, आस-पास कोई दिखाई नहीं दे रहा। मैं एक खुली-सी झोपड़ीनुमा आकृति के नीचे बेंच पर बैठा यह चिट्ठी लिख रहा हूँ। बूंदें यहाँ तक नहीं पहुँच पातीं कि पन्नों को गीला कर सकें, लेकिन हवाओं की सिहरन इस नीरव एकांत में मन को ज़रूर गीला कर रही है।
यहाँ बैठकर मुझे अक्सर लगता है कि मैं घंटों इसी तरह चुपचाप बैठा रह सकता हूँ। पिछले कुछ वर्षों में मुझे यह समझ आई कि हम इस दुनिया में इतने डूबे हुए लोग हैं कि स्वयं से अजनबी बने रह जाते हैं। मैंने पिछले कुछ सालों में दूसरों की बजाय अपने-आपको समझने में ज़्यादा समय लगाया है। यह स्वीकार किया है कि दुनिया में तरह-तरह के लोग होते हैं और उनका अलग होना लाज़मी है। मुझे क्या पसंद है, किस तरह के लोग, कैसी बातें, कैसा मौसम, कैसा रहन-सहन—ऐसा नहीं कि कोई सोच-समझकर चुनता है। अपने डीएनए और अपनी परिस्थितियों के बीच वह ऐसा बन ही जाता है। उसे खुद ही नहीं पता कि उसे वह सब क्यों पसंद है। हाँ, इतना ज़रूर है, जब स्वयं को समझने की कोशिश की तो जाना कि पसंदीदा चीज़ें ही मन को प्रसन्न रखती हैं। खुश रहने की कोशिश करना तो हमारा मूलभूत अधिकार होना चाहिए।
इन आत्म-विवेचना के क्षणों में मैंने स्वीकारा कि मुझे अकेले रहना अच्छा लगता है। समाज हमेशा लोगों की झुंड को इकट्ठा कर कोई समूह बनाने पर ज़ोर देता है। समाज के पास हज़ार बहाने हैं—भाषा, संस्कृति, गाँव, शहर, धर्म, जाति, रंग या ऐसे कई आधार जिन पर संगठन बनाया जा सकता है। अकेला व्यक्ति भीड़ के सामने कमज़ोर दिख सकता है, पर जब वह भीड़ का चेहरा बन जाता है तो ताक़त महसूस करता है। फिर भी अगर उसने अकेले रहना चुना तो भीड़ के ऊपर प्रश्नचिह्न लग सकता है। इसलिए भीड़ उसे अपने भीतर मिलाने को उकसाती है—कभी फुसलाकर, कभी डराकर, कभी दबाव डालकर।
मैंने यह दबाव कई दफा महसूस किया। चाहे दोस्तों की भीड़ ने कहा हो—“चलो शराब पीते हैं” या फिर परिवार और रिश्तेदारों ने कहा हो—“चलो मंदिर हो आएं।” निर्णय का दबाव हमेशा था। इतने लोग मिलकर कुछ करना चाहते हैं, फिर सही-गलत का प्रश्न ही नहीं उठने देते। जैसे-जैसे मैंने खुद को पहचाना, धीरे-धीरे “ग्रुप” की कई योजनाओं को मना किया। ऐसा करना मुझे हमेशा मुश्किल लगा। कई बार शामिल भी हुआ, किन्तु जैसे-जैसे मन में स्पष्टता बनी, अपने मन का करने की हिम्मत भी बढ़ी।
मैंने सोचा कि आखिर मेरा भय क्या है। एक ही बात समझ आई कि भीड़ के बीच व्यक्तित्व की जगह संगठन का रंग हावी हो जाता है। वहीं, जब सिर्फ दो लोग बातचीत में होते हैं, तब दोनों अपने-अपने व्यक्तित्व के साथ बने रहते हैं। जब दोस्त साथ में शराब पी रहे होते हैं तो मिलकर बॉस को गालियाँ देते हैं। जब परिवार मंदिर में होता है, तो मिलकर एक ही चालीसा पर झूम रहा होता है। भीड़ आपको अलग सोचने का मौका नहीं देती। आपकी स्वायत्तता को निगलना चाहती है। आपको बाकियों-सा बनाना चाहती है।
ऐसा नहीं कि भीड़ में कोई बुराई है। यह एक जीने का तरीका है। कईयों को भीड़ पसंद है, लोग पसंद हैं। अगर उन्हें निमंत्रित न किया जाए तो वे FOMO (Fear of Missing Out) के शिकार हो जाएँगे। उन्हें लगेगा कि मैं पीछे छूट गया। अपने बारे में सोचता हूँ तो लगता है मुझे FOJI (Fear of Joining In) है। कहीं कोई मुझे किसी ग्रुप में शामिल न कर ले! किसी सामूहिक कार्यक्रम में आने को न कह दे।
ऐसा स्वभाव बना क्यों, ठीक-ठीक नहीं पता। यह ज़रूर है कि मैं ठहरा निरा सृजनशील व्यक्ति। सृजन इंसान से अकेलापन मांगता है। कविता, पेंटिंग या कोई भी सृजन इंसान को पूरी तरह चाहता है। भीड़ का हिस्सा होकर आप कविता पर तालियाँ बजा सकते हैं, पर लिख नहीं सकते। अकेलेपन का श्राप है कि संगठन से आप दूर हो जाएँगे, पर इसका वरदान है कि सृजन के पास रहेंगे। सृजन कभी समूह से नहीं आता, वह एक व्यक्ति की निजता से जन्म लेता है।
लेकिन यह भी सच है कि दुनिया इंद्रधनुषी है। यहाँ संगठन भी चाहिए और अकेलेपन की ज़रूरत भी। किन्तु दो भिन्न विचारों का साथ रहना हमेशा मुश्किल रहा है। फर्क बस इतना है कि समूहप्रिय लोग बार-बार दबाव बनाते हैं, बुलाते हैं, जोड़ते हैं। “यार, क्या अकेले उदास बैठे हो, आओ, कुछ किया जाए”—कितनी सुनी-सुनी-सी पंक्ति लगती है। पर जो एकांतप्रिय लोग हैं, वो क्या दबाव बनाएँगे? “चलो सब लोग मिलकर अकेले रहें”—कभी आपने किसी के मुँह से सुना है? वे बेचारे अपना एकांत बचा पाएं, यही बहुत है।
इस ख़्याल से होठों पर मुस्कान तैर गई। बारिश रुक गई है। एकांत से भीड़ की ओर प्रस्थान का समय आ गया। पर इस चिट्ठी का सृजन तो एकांत की ही देन है। अपनी कविता की कुछ पंक्तियाँ तुम्हें सौंपता हूँ—
पूर्ण एकांत के क्षण,
बाकियों से भिन्न होते हैं,
अंतरंग अनुभव के,
यही तो स्मृति-चिह्न होते हैं।
विदा,
वीकेंड वाली चिट्ठी