About the Book

हो सकता है बाकियों के लिए वो एक और शाम थी, पर मेरे लिए वो शाम फिर नहीं आने वाली थी | घाट का वो हिस्सा जहाँ अक्सर हम एक दूसरे से मिलते और फिर बोटिंग के लिए जाते , मुझसे तकरीबन 100 मीटर की दूरी पर था | लोगों की भीड़ में मेरी आँखें उसे ढूँढना भी चाहती थी, और उन्हें उसके अचानक मिल जाने का डर भी था |

मार्च की उस शाम में जब सूरज आधा हीं डूबा था, थोड़ी सी सिहरन थी | गंगा के शांत पानी मे उसकी किरणों की लाली किसी के पैरों के महावर की तरह फैली थी | मेरे अन्दर चल रहे तूफ़ान से कोसों दूर, उस घाट पर लोग हमेशा की तरह अपनी धुन मे मगन थे | संध्या-स्नान के बाद माथे पर चन्दन का टीका लगाते कुछ सन्यासी, दूर से ही संध्या आरती का अज़ान पढ़ती कुछ मंदिरों की घंटिया, गंगा आरती की तैयारी मे लगा सफेद और पीले कपड़ों मे पंडितों का एक हुजूम, आश्चर्य भरी आँखो से गंगा घाट की खूबसूरती निहारते कुछ अँगरेज़|

एक माँ अपने नन्हे बच्चे को आँचल मे छुपाए , गंगा से उसकी लंबी उम्र की दुआ मांग रही थी | एक नया-नया प्रेमी जोड़ा हाथ में हाथ पकड़कर चल रहा था | उनके नये नये शरमाते रिश्ते की तरह उनकी उंगलियाँ भी चलते चलते कभी एक दूसरे को छू लेती थीं, तो कभी शरमा के दूर चली जाती थीं | एक शादी-शुदा जोड़ा पंडित जी को साक्षी बनाकर, गंगा मैया से इस बात का आशीर्वाद ले रहा था कि उनकी खुशियों को किसी की नज़र ना लग जाए | एक उम्रदराज़ जोड़ा एक दूसरे का सहारा बनकर घाट की सीढ़ियाँ उतर रहा था | एक दूसरे को हर सीढ़ी के बाद वे दोनो ऐसे देखते थे, जैसे डर था कि न जाने कौन सी सीढ़ी पर उनमे से कोई ठहर जाए, और दूसरे को बिना सहारे के आगे बढ़ना पड़े | वहीँ बगल के मणिकर्णिका घाट पर अलग बेबसी का नज़ारा था | कुछ लोग अपनों को मुखाग्नि देने की तैयारी में थे, इस कसमकस के साथ कि अब जिंदगी में कभी भी वो चेहरा नहीं दिखेगा |

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