About the Book

प्रेमचंद

एक ख़्वाहिश है,

कि कभी जो तुम एक दोस्त बनकर मिलो,

तो कुल्हड़ में चाय लेकर,

तुम्हारे साथ सुबह का कुछ वक़्त गुज़ारूँ,

तुमसे बातें करते शायद देख पाऊँ,

तुम्हारी आँखों में छुपे वो सारे राज़,

जो लाख कोशिशों के बावजूद,

तुम्हारे अन्दाज़ में नहीं देख पाया,

ये तुम्हारा समाज….

मसलन, छोटे से गाँव का एक मेला,

जो बच्चों के लिए महज़ खिलौनों

और मिठाइयों की दुकान में होता है सिमटा,

उसी ईदगाह के मेले में, कैसे दिख जाता है तुम्हें,

वो नन्हा सा हामिद,

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