About the Book

दोस्त मज़ाक़िया तौर से पूछते हैं,

ये जो तुम काग़ज़ काले करते हो,

ये कौन से ख़ज़ाने की गुल्लक है,

जिसे तुम हफ़्ते दर हफ़्ते भरते हो?

मैं भी सोच में पड़ जाता हूँ,

कि ये कैसा अजब जुनून है?

बेवजह लिखते चले जाना,

यह कौन-सा खास सुकून है?

फिर लगता है कि…

कोई पूरी ताक़त लगाने पर भी,

हारकर कोने में कहीं बैठा होगा।

क़िस्मत से जिसको जीत मिली,

वो अपने दंभ में कहीं ऐंठा होगा।

कहीं कोई छोटी-सी बात पर,

अपनों से देर तलक रूठा होगा।

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