About the Book

यूँ ही एक और साल बीत गया,

साल के बावन हफ्ते गुजर गए,

बेतरतीब से खयाल लिखते रहे,

एक किताब मुकम्मल कर गये…

एक पुरातन जापानी सिद्धांत है- ‘वाबी साबी’, जिसका मतलब है, चीजों की अपूर्णता में सुंदरता ढूँढना। जीवन में हर चीज को ‘परफेक्ट’ बनाने की लालसा भी तो महज मृगमरीचिका ही है। मैं अपनी जीवन यात्रा पर सरसरी नजर डालता हूँ तो यही लगता है कि मेरे हिसाब से जीवन नहीं चला। मैंने जब जो चाहा, चीजें अक्सर या तो उससे बुरी हुई या अच्छी हुई, उससे पहले हुई या देर से हुई, किन्तु हूबहू वैसे कभी नहीं हुई जैसा मैंने चाहा था। कभी फुर्सत से आप अपनी जीवन यात्रा को खंगालियेगा, और आप पाएंगे कि आपने जहाँ से शुरुआत की थी और आज जहाँ पहुँचे हैं, इसके बीच की दूरी तय करने में आपने भले ही लाख योजनाएँ बनायीं हों, किन्तु ज्यादा हाथ ‘बेतरतीब’ तरीके से हुई घटनाओं, मिले लोगों और अनुभवों का रहा होगा।
 यह कविता संग्रह ‘बेतरतीब’ प्रकृति के इस मूल स्वभाव को समर्पित है। साल के बावन हफ़्तों की बावन वीकेण्ड वाली कवितायें घर, दफ्तर, गाँव, परदेश, त्यौहार, विषाद, रिश्ते और एकांत जैसे मन में चल रहे बेतरतीब ख्यालों की गुल्लक है। जीवन के “बेतरतीब” स्वभाव को स्वीकारते हुए, इसी में एक आभासी तारतम्यता की तलाश करते रहिए और भारमुक्त रहिए।

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