अंतिम पड़ाव
कभी देखा है तुमने किसी इंसान के,जीवन का अंतिम पड़ाव?सब कुछ हासिल करने के बाद का अधूरापन,कितना खालीपन लिए होता है।जैसे डूबते सूरज के सिंदूरी आकाश में,कोई वक्त के बचे…
कभी देखा है तुमने किसी इंसान के,जीवन का अंतिम पड़ाव?सब कुछ हासिल करने के बाद का अधूरापन,कितना खालीपन लिए होता है।जैसे डूबते सूरज के सिंदूरी आकाश में,कोई वक्त के बचे…
सपनों की फ़ेहरिस्त में, मेरा एक ख़ास सपना है,मुझे बारिशों के चंद रोज़, पहाड़ी रिसॉर्ट पर रहना है, अदरक की चाय लिए, खिड़की की ओट से,बूँदों के सिक्के निकालूँ, बादल…
वीकेंडतलाशता रहता है मन,उन्मुक्त मानसिक अवकाश,जैसे देखती हैं किसान की आँखें,इस मेड़ से उस नहर तक फैले खेत,मैं भी ढूँढता हूँ,दूर तलक फैली आलसी वक्त की मिट्टी,जिसमे बो पाऊं सृजन…
एक ख़्वाहिश है,कि कभी जो तुम एक दोस्त बनकर मिलो,तो कुल्हड़ में चाय लेकर,तुम्हारे साथ सुबह का कुछ वक़्त गुज़ारूँ,तुमसे बातें करते शायद देख पाऊँ,तुम्हारी आँखों में छुपे वो सारे…
कुशीनगर की धरती पर जन्मा,वो बुद्ध सा स्वच्छंद था,नाम भी रखा पिता ने,सत चित आनंद था,यूँ ही अकेले घूमता था,मौन रहकर सोचता था,संसार के हरेक वज़न को,अपनी तराज़ू से तौलता…
दोस्त मज़ाक़िया तौर से पूछते हैं,ये जो तुम काग़ज़ काले करते हो,ये कौन से ख़ज़ाने की गुल्लक है,जिसे तुम हफ़्ते दर हफ़्ते भरते हो? मैं भी सोच में पड़ जाता…
ऐसी कई लड़ाइयाँ होती हैं,जो अकेले लड़ता है इंसान,भीतर से टूटा, उदास, खाली,बाहर हँसता रहता है इंसान… हालात, लोग या घटनाएँ,हर कहानी में एक विलेन है,हम सबके सीने पर,किसी पत्थर…
इस मोबाइल के दौर में, जब हर भोपाल, बनारस और पटना, मुंबई हो जाने को बेताब हैं, चंद सालों पहले की कहानियाँ ‘उन दिनों की बात’ होती जा रही हैं।…