
About the Book
पहाड़ी बारिश
सपनों की फ़ेहरिस्त में, मेरा एक ख़ास सपना है,
मुझे बारिशों के चंद रोज़, पहाड़ी रिसॉर्ट पर रहना है,
अदरक की चाय लिए, खिड़की की ओट से,
बूँदों के सिक्के निकालूँ, बादल की सफ़ेद कोट से,
फूलों की लापरवाह क्यारी में, कहीं चंपा और कहीं गुलाब हो,
मेज़ पर डायरी और कलम हो, पास निर्मल की कोई किताब हो,
रात में रोशन पहाड़ी पर, सिर्फ जुगनू ही पहरेदार हों,
रात भर भीगते और ऊँघते, पेड़ों में चीड़ – देवदार हों,
न फ़ोन हो ना फ़ोन की तस्वीरें, सोशल मीडिया पर मुस्तैद हों,
बस आँखों से ली कुछ तस्वीरें, जो आँखों के भीतर ही क़ैद हो,
पहाड़ों के विशाल सीने पर, कोमल बारिश की फ़ुहार हो,
ऊबड़ खाबड़ यादों से परे, समतल विचारों का संसार हो,
प्रकृति मूक संवादों के पल में, कुछ ऐसा मुझसे कह जायें,
मैं पहाड़ों से लौट चला आऊँ, पर पहाड़ी बारिश मुझमें रह जाये..
2. सहेजना
बचपन की मासूम आलमारी में ,
क्या-क्या सहेज कर रख आये,
वक्त की धूल चीज़ें मिटा गयीं,
हम देखने को भी नहीं जा पाये,
दूध के नये नये टूटे हुए सफ़ेद से दाँत,
गाँव के खपरैल वाले घर की मुँडेर पर ,
छुपा आया था चूँ चूँ करते रंगीन जूते,
भूसे वाले कमरे में कहीं पकने को,
छोड़ आया था मैं कुछ कच्चे आम,
ननिहाल में रोशनदान पर पड़ा होगा,
माचिस की डिबिया वाला मेरा टेलिफ़ोन,
स्कूल की क्लास के कोने वाले बेंच पर,
खुरचकर लिखा होगा आज भी मेरा नाम,
आलमारी की बेतरतीब किताबों में होगी,
ग़ुलाब की पंखुड़ी और अधलिखी चिट्ठी,
बचपन का सहेजा बेफ़ज़ूल लगता है,
पर सहेजने की ऐसी लत लग गई,
चीज़ें बदली और तरीक़ा बदला,
पर सहेज़ने की आदत नहीं गई,
अब भी सहेजता हूँ मैं,
बैंक और ज़मीन के काग़ज़ात,
तमाम अकाउंट और उनके पासवर्ड,
ड्रॉपबॉक्स और क्लाउड के राज़ में,
प्यार, नफ़रत , स्नेह, जलन,आंसू ,
दिल के किसी पोशीदा दराज़ में…
इंसान कितना भी सहेज कर रख ले,
अंत में सब रिक्त रह जाता है ,
स्मृतियों के अलावा उसके पास ,
आख़िर में कुछ नहीं बच पाता है…
3. क्षणभंगुर जीवन
4. अवचेतन
रोज़ के इस शुष्क नीरस,
और रोबोटिक जीवन में
कितना कुछ पड़ा हुआ है,
बेसमेंट सरीखे अवचेतन में,
दिमाग़ में ढेरों स्मृतियाँ,
कानों में रखी अनुगूँजे,
ज़ुबान पर अनकही बातें,
अधूरी इच्छाओं के पुर्ज़े,
ना सहेजते हैं ना फेंक पाते हैं,
ये तलघर में यूँ बेकार हैं पड़े,
अख़बार, सीमेंट की बोरियाँ,
लोहे और प्लास्टिक के टुकड़े,
ये सुसुप्त पड़ी हुई चीज़ें
किसी ज़रूरत के क्षण,
अचानक आ धमकती हैं,
बिना किसी नेह निमंत्रण,
कार के सफ़र में याद आती है,
गाँव के मिट्टी की टूटी सड़क,
बेटी की आँखों में दिखती है,
माँ के आँखों की एक झलक,
वो चीज़ें ख़ुद जग जाती हैं,
जो पड़ी हुई हैं अवचेतन में,
जागृत मन जब सो जाता है,
किसी स्वप्न में या सृजन में,
दोनों का उतना ही प्रभाव है ,
चेतन मन साथ खड़ा रहता है,
अवचेतन भले ना दिखता हो,
मन के कोने में पड़ा रहता है,
5. वीकेंड
तलाशता रहता है मन,
उन्मुक्त मानसिक अवकाश,
जैसे देखती हैं किसान की आँखें,
इस मेड़ से उस नहर तक फैले खेत,
मैं भी ढूँढता हूँ,
दूर तलक फैली आलसी वक्त की मिट्टी,
जिसमे बो पाऊं सृजन के कुछ बीज,
छत पर लेटे देख पाऊँ अनंत आकाश,
तोड़ पाऊं कल्पनाओं के अनगिनत तारे,
फ़ैलते शहरों ने जैसे गाँव लील लिये,
व्यग्रता और आपाधापी ने,
हर लिया है इंसान का सारा समय,
वक्त की तंग सुरंग में चलते,
सूचनाओं की काई पर पैर फिसलते रहे,
जैसे स्लीपर बर्थ पर बैठा यात्री ,
देखता है स्टेशन पर उमड़ी भीड़ को,
मैं भी टिककर बैठने के लिए,
खोजता रहा निश्चिंत समय का कोना,
और फिर हफ़्ते भर बाद,
दिखती है वीकेंड की स्फटिक शिला,
और सामने वक्त का नीला जलाशय,
पानी में पैर डाले सारी व्यग्रताएं डुबो देता हूँ,
मैं सोचता हूँ,
नसीब में इतना तो होना ही चाहिए,
शनिवार की भारहीन रात,
रविवार की निश्चिन्त सुबह,
पर सबकी क़िस्मत में नहीं होती,
एक स्फटिक शिला और नीला जलाशय।
6. माँ बूढ़ी हो रही है
अबकी मिला हूँ माँ से,
मैं वर्षों के अंतराल पर,
ध्यान जाता है बूढ़ी माँ,
और उसके सफ़ेद बाल पर,
आज-कल की ढेरों बातें ,
वह अक्सर भूल जाती है,
मेरे बचपन की पुरानी बातें,
वह कई दफा दुहराती है,
थोड़ा झुक कर चलती है,
थोड़ा सा लड़खड़ाती है,
रात में देर तक जागती है,
दिन में अक्सर सो जाती है,
जिस माँ को छोड़कर गया था,
लौटकर उसे क्यों नहीं पाता हूँ,
कई दफा माँ की बातों पर भी ,
मैं अनमने खीझ से भर आता हूँ,
स्मृतियों के पंख लगाए तब मैं ,
पुरानी माँ से मिलने जाता हूँ,
दिखती हैं माँ मुझे गोद में लिए-लिए ,
सारे घर का जिम्मा एक पैर पर उठाते,
आँगन के सिलबट्टे पर मसाला पीसते,
मेरे पीछे दूध का गिलास लिए भागते,
जीवन की कोरी स्लेट पर रात को,
मुझे सही गलत के क ख ग सिखाते,
बल बुद्धि विवेक का क्षीण होना,
हम सबकी उम्र का किस्सा है,
मेरे पास आज जो भी समझ है,
वो भी तो मेरी माँ का हिस्सा है,
माँ का बूढा होते जाना,
नहीं है एक दिन का सिला,
गलती मेरी थी जो मैं उससे,
वर्षों के अंतराल पर मिला,
अब रोज वीडियो कॉल पर,
मैं उसे ग़ौर से देखा करता हूँ,
उसकी सारी बातें सुनता हूँ,
चाहे गलत हों या सही,
उसे देखते अंतर्मन में एक भय कचोटता है,
कल मेरे फोन में माँ का सिर्फ नंबर रहेगा,
शायद माँ नहीं…
7. मौन
ख़ामोशी कई दफ़ा,
शब्दों से ज़्यादा कह जाती है,
जब मौन बोलने को बढ़ता है,
आवाज़ स्वयं पीछे रह जाती है,
कई बार के हारे हम एक रोज़,
अचानक से कभी जीत जाते हैं,
इस जीत का जश्न मनाने को ,
तब हम कोई शब्द नहीं पाते हैं,
परिणाम और आँखों के बीच,
एक अनूठा सा संवाद होता है,
उस सालती सी चुप्पी में भी,
अंतिम विजय का नाद होता है,
कॉलेज के उन दिनों में ,
जब तुम्हें फ़ोन करके,
जाने तुम क्या सोचोगी,
इस ख़याल से डरके,
रिसीवर हाथ में लिए हम दोनों,
देर तलक ख़ामोश रहा करते थे,
हमारी साँसे बात कर लेती,
पर हम कुछ नहीं कहा करते थे,
प्रेम पर मैंने जितना सुना पढ़ा,
उतने ही मानकों में लिख पाया,
पर उन ख़ामोश पलों का प्रतिबिंब,
किसी कविता में नहीं दिख पाया,
बहस के झंझावात से बचने को,
कभी यह तो कभी वह कहता हूँ,
किंतु अक्सर तब साफ़ निकलता हूँ,
जब- जब मैं बिलकुल चुप रहता हूँ,
दुनिया आपके हिसाब से नहीं चलती,
हर बात पर बेवजह मत शोर करिए,
किसी कर्मयोगी सा ध्यानलीन होकर,
बाहर की ज़्यादातर बातें इग्नोर करिए ….
8. बारिश
9. रंगमंच
दुहरा जीवन जी लेने में माहिर,
ये जो रंगमंच के कलाकार हैं,
एक चरित्र बना है मंच के लिए,
दूसरा इनका अपना किरदार है,
देखना कभी उन्हें तुम मंच पर,
तमाम भाव भंगिमाएँ बनाते,
किरदार में डूबकर संवादों से,
श्रोताओं को भरपूर रिझाते,
मंच पर नृत्य के कुलाँचे भरते हैं,
अपने किरदार में यूँ घुल जाते हैं,
अपनी कला में सुध बुध खोकर,
वे अक्सर ख़ुद को भूल जाते हैं,
मंच की उस दूधिया रोशनी में,
एक चरित्र निखर कर आता है,
पर्दे के पीछे का उनका जीवन ,
कोई पहचान भी नहीं पाता है,
और फिर बुझ जाती है रोशनी,
धीरे-धीरे पर्दा भी गिर जाता है,
सर्टिफ़िकेट और कुछ यादें लिए,
कलाकार घर को लौट आता है,
अपना रंगा पुता सा चेहरा,
वो रगड़-रगड़ कर छुड़ाता है,
ऑफिस या फिर किचन में
पहले की तरह डूब जाता है ,
बाक़ियों की तरह ढर्रे पर जीता हैं,
ज़िम्मेदारियों का बोझा उठाता है,
उसी पुराने रोबोटिक से जीवन में,
मंच के किरदार को भूल जाता है,
जीवन भी तो बस एक रंगमंच है,
हर किरदार का यही फ़साना है,
मंच पर गुज़रे पलों की याद लिए,
पर्दा गिरते सबको लौट जाना है ,
10. खड़े रहो
11. निर्णय
जब विकल्प नहीं हो जीवन में,
अंतर्द्वंद चल रहा हो मन में,
जब राह न कोई सूझ रही,
इस कदर अँधेरा हो वन में,
जब लगे कि दोनों जाया है,
दोनों में कुछ खोया पाया है,
सही-गलत की उहापोह में,
नाहक ही वक्त गवांया है,
हर बात में कोई अर्थ लगे,
सारी तरकीबें व्यर्थ लगें,
निर्णय बड़ा ज़रूरी हो पर,
खुद में न इतनी सामर्थ्य लगे,
आँखें मूँद उसे तुम याद करो,
तुम ! इश्वर से संवाद करो,
थोड़ी देर ठहर कर सोचो,
अपनी ऊर्जा न यूँ बर्बाद करो,
औरों की चिंता छोड़ वहीँ,
निर्णय होगा भीतर ही कहीं,
फिर बढ़ जाना उस पथ पर,
जो तुम्हारे दिल को लगे सही,
छूटे पर मत पछताना तुम,
निर्णय लेकर मत रोना तुम,
इश्वर के नाम समर्पित कर,
बस चैन की नींद सोना तुम,
कैसे भी निर्णय लोगे तुम,
चुनने में मुश्किल होगी,
पर मन का निर्णय लोगे तो,
आगे की यात्रा ज़रा सरल होगी,
नियति के आगे जीवन में ,
तुम्हारा चयन खड़ा नहीं होता,
कोई भी कैसा भी निर्णय ,
जीवन से बड़ा नहीं होता,
12. शब्द
13. विदेश में माँ
जब माँ पहली दफा विदेश में आयी,
साड़ी पहने हिन्दीनुमा शक्ल लिए,
उसके माथे की टिकुली गौर से देखते विदेशी,
जैसे ढूंढ रहे हों भारत का इतिहास भूगोल,
आँगन और किचन में ,
जीवन का अधिकांश हिस्सा गुज़ार,
जब विदेश में मेरे संग बाहर निकली,
चुंधियाई सी फटी हुई आंखें लिए निकली,
निरखती रही ऊंची बिल्डिगों और साफ़ सडकों को,
” पाइप लगाकर रोज़ धोते होंगे”
फुसफुसाते हुए मुझे कहा ,
धुल धूसरित दुनिया की अभ्यस्त उसकी आँखों ने,
एसी कारों में खिड़की खुलवाने की ज़िद लिए,
रसोई घर की आदतन,
साड़ी के आँचर से पोछती रही माथा,
जिन सब्जियों को घर के पिछवाड़े वाले खेत से खोंट लाती थी,
सुपर मार्किट से शॉपिंग करते वक्त,
उन्ही सब्ज़ियों की कीमत पर भक्का हो जाती ,
विदेशियों का चोला पहने मेरे देशी दोस्तों से बतियाते,
वह हिंदी के शब्दों को ढूंढते हुए सकुचाती है,
और हिंदी पाकर जब बेबाक होती, तो मैं सकुचाता हूँ,
कुछ महीने मेरे पास रहकर,
मुझे इस इन्द्रासन में बने रहने का आशीष देकर,
वो चली गयी,
यहाँ की बातें पड़ोसियों को अचंभित होकर बताते,
यहाँ का गुज़रा वक्त अपने आदिम उम्र से निकाल,
मन ही मन स्वर्ग वाले उम्र में जोड़ लेती है,
पर माँ अपनी ज़मीन पर ही रहना चाहती है,
मेरे इस स्वर्ग में हमेशा नहीं आना चाहती,
14. भारत
कितने सिकंदर आये यहाँ,
और कितने गजनवी चले गये,
कुछ ने धक्का-मुक्की किया,
कुछ दूध में चीनी जैसे घुले रहे,
सबने हमको खींचा ताना ,
अपने स्वार्थ से साधा हमको,
पर कोई तो डोर रही होगी,
जिसने मज़बूती से बाँधा हमको,
पूरब पश्चिम उत्तर दक्खिन,
चाहे जितने टुकड़ों में बाँटो हमको,
भाषा , मौसम और रहन सहन,
चाहे जिस छुरी से काटो हमको,
कही हिन्दी और कही तमिल,
कन्नड़ तो कही मलयालम है,
दो चार परग पर दिख जाए,
एक नयी भाषा का आलम है,
कुछ लोगों की आँखें बड़ी-बड़ी,
तो कुछ लोगों की चिपटी नाक है,
अलग-अलग है शक्ल-ओ-सूरत,
हमारे अलग अलग पोशाक है,
कुछ गोरे हैं और कुछ भूरे हैं,
और कुछ का रंग सियाही है,
एक ही माँ के जने हम कैसे,
रंगबिरंगे बहन और भाई हैं,
कलकत्ते का मौसम मनभावन है,
पर चेन्नई में गर्मी का क़हर है,
वहाँ जम्मू में बरफ़ पड़ रही,
और यहाँ यूपी में शीतलहर है,
चेरापूंजी में दिन भर बारिश,
और दिल्ली में धूप दिखे है,
एक ही देश में तरह-तरह के,
मौसम के कितने रूप दिखे हैं,
कोई इडली डोसा खाकर,
पायसम के मज़े लूट रहा है,
कोई नान पनीर चखने के बाद,
रसगुल्ले पर टूट रहा है,
ऐसे मिर्च- मसालों के,
स्वाद कहाँ चख पाओगे,
एक बार जो भारत आओगे,
फिर सी सी करते जाओगे,
जिन बातों पर तुम बाँट रहे,
यही तो हमारी पहचान है,
यही भारत है यही इण्डिया,
अरे यही तो असली हिंदुस्तान है,
सिर्फ़ देह अगर तुम देखोगे तो,
हर कोई अलग दिख जाता होगा,
पर आत्मा अगर खँगालोगे,
वहाँ एक तिरंगा लहराता होगा,
ग़ौर से दिल की धड़कन सुनना,
वह एक ही गीत सुनाता होगा,
अपने लहजे, अपनी बोली में,
बस जन गण मन ही गाता होगा,
इतने अनेक पर कैसे एक,
यह बात तुम्हें खटकती है,
तो सुनो तुम्हें बतलाता हूँ
क्यों यह डोर नहीं चटकती है,
यहाँ पुरुषों के मॉडल एक राम हैं,
स्त्रियों में त्याग की मूर्ति सीता है,
यहाँ नीलकंठ एक शंकर है,
जो दूसरों के लिए विष पीता है,
हर कुरुक्षेत्र में एक कृष्ण है जो,
सही ग़लत का फ़र्क़ बताता है,
हर सारनाथ में कोई बुद्ध है जो,
धीरज का मरम सिखाता है,
जिस डोरी के एक-एक रेशे में,
नानक और महावीर का चरित्र है,
ऐसे ही नहीं चटक जाएगी यह,
एकता की यह डोर बड़ी पवित्र है..
15. जहाजी का संघर्ष
तुम तो बस यूँ ही कह देते हो कि,
जहाज़ की नौकरी में पैसे बहुत हैं,
कभी झांकना उनकी ज़िंदगी को,
फिर मुझे बताना यह कैसे बहुत हैं,
महसूस करना उस तड़प को,
जब घर पर कोई बहुत बीमार हो,
कोई भी सँभालने वाला न हो ,
उसके तुरंत घर होने की दरकार हो,
कामों के बीच दुआ करता होगा,
वो असहाय सा फ़ोन करता होगा,
मन में बीसियों ख़याल चलते होंगे,
बाहर से बिलकुल मौन रहता होगा,
इस असहायता को पल पल जीना,
महसूस करके बताना कि ये कैसे बहुत हैं,
तुम कहते हो समंदर में पैसे बहुत हैं,
कोई बर्थडे, पार्टी या कोई गेट टुगेदर,
बहन की शादी या कोई त्यौहार होगा,
घर पर लोगों की भीड़ ज़रूर होगी,
कुछ आँखों को उसका ही इंतज़ार होगा,
वो महीनों से कहता आया है,
कि इस बार वक्त पर आएगा,
जबकि उसे पता है कि समंदर में,
वक्त का वादा निभा नहीं पाएगा,
न आ पाने की खबर कब दूँ की उधेड़बुन,
महसूस करके बताना कि ये कैसे बहुत हैं,
तुम कहते हो समंदर में पैसे बहुत हैं,
समंदर के उस वीरान अकेलेपन में,
वो जो कभी ज़्यादा बीमार होगा,
ज़मीन की सुविधाओं से कोसों दूर,
बाहर से बहादुर, भीतर से लाचार होगा,
हे ईश्वर ! ज़िम्मेदारियाँ हैं मुझ पर,
वक्त इन्ही प्रार्थनाओं में जाता होगा,
मुझे कुछ हो गया तो क्या होगा,
अकेले कमरे में यह डर सताता होगा,
हॉस्पिटल से मिलों दूर थमती साँसों को,
महसूस करके बताना कि ये कैसे बहुत हैं,
तुम कहते हो समंदर में पैसे बहुत हैं,
बड़े संघर्ष के पैसे हैं ये,
बड़ी क़ुर्बानी की पैसे हैं,
भय और असहायता से भरी,
किसी की कहानी के पैसे हैं
इन पैसों से कई घरों में ख़ुशियाँ है,
बेवजह इल्ज़ाम न लगाओ तुम,
कभी लगे कि थोड़ा ज़्यादा हैं तो,
चंद रोज़ समंदर में बिताओ तुम,
16. जो तुम हँस देते एक बार,
नयनों में भरे अश्रु कलश,
राह में बिछते बन पराग,
झंकृत हो जाते मन के तार,
धड़कनें कढ़ाती ऐसा राग,
उस क्षण जाता सर्वस्व हार,
जिस क्षण तुम हँस देते एक बार,
झिलमिला जाते आर्द्र नयन,
मिट जाता सीने से विराग,
मौसम में घुल जाता बसंत,
जग उठते मेरे सोये भाग,
मैं लेता उस पल की नज़र उतार,
जिस पल तुम हँस देते एक बार,
मन के करुण संदेश सभी,
होठों में शामिल हर विषाद,
देख तुम्हें सब धुले जाते ,आई
जगे हृदय में ऐसा आह्लाद,
टूट पड़ें प्रेम के सारे कछार,
जो तुम हँस देते एक बार,
मोहपाश में बाँधो मुझको,
तुम मेरे चिरंतन मीत बनो,
आजीवन जिसे मैं गा पाऊँ,
उस अमर प्रेम का गीत बनो,
हँस उठे मेरा उजड़ा संसार,
जो तुम हँस देते एक बार,
17. बाबा सा ख़याल रखना
बर्थडे पर आईफ़ोन दिलाओ,
मज़ाक़ में अक्सर कहूँगी,
पर तुम्हारी बोरिंग सी पोएट्री पर भी,
मैं बेइंतहाँ खुश रह लूँगी,
बस भीड़ में जब नज़रें मिले,
तुम देखकर मुस्करा देना ,
सड़क पार करने को चलूँ,
हाथ थामकर पार करा देना,
ये बातें मैं कभी कहूँगी नहीं,
तुम मन में इन्हें सँभाल रखना,
मेरे बाबा जैसे रखते थे,
वैसा ही तुम ख़याल रखना,
दोस्तों संग मनमर्ज़ियाँ करूँगी,
छोटी मोटी मेरी भी ख़ाहिशे होंगी,
कभी बेड टी की डिमांड रहेगी,
कभी चटर-पटर फ़रमाइशें होंगी,
इससे मत मिला करो,
वहाँ मत जाया करो,
यूँ सड़क वाले ठेले पर,
गोलगप्पे मत खाया करो,
कुछ मेरे मन की भी करने देना,
बात बेबात मत बवाल करना,
मेरे बाबा जैसा रखते थे,
वैसा ही तुम भी ख़याल रखना,
एक पल में नाक पर ग़ुस्सा,
और दूज़े पल में प्यार करूँगी,
जब भी जैसा महसूस होगा,
तुरंत ही उसका इज़हार करूँगी,
हम लड़कियों के हार्मोन्स,
हमें ही नहीं समझ आते हैं,
तुम्हें शिकायत है कि मूड स्विंग,
पहले से तुम्हें क्यों नहीं बताते हैं,
लड़के ऐसे क्यों नहीं होते?
मत ऐसा stupid सवाल करना,
मेरे बाबा जैसा रखते थे,
वैसा ही तुम ख़याल रखना,
तुम्हारे घर मैं सिर्फ़,
तुम्हारे लिए आयी हूँ,
कितना भी कर लूँ मैं,
पर आज भी वहाँ परायी हूँ,
कई बातें लगती है दिल को,
मुझे रोने देना जी भरके,
कुछ समझाने की ज़रूरत नहीं,
पास बैठे रहना चुप करके,
बस हाथ थामे रहना और,
जेब में अपनी रूमाल रखना,
मेरे बाबा जैसा रखते थे,
वैसा ही तुम ख़याल रखना,
दादियाँ नानियाँ सहती आयी,
मैं भी थोड़ा सा सह लूँगी,
जब दुनिया पर ग़ुस्सा आएगा,
तुमसे खरी खोटी कह लूँगी,
तुम्हारा ब्लू और मेरा पिंक,
माना दोनों के अलग थीम है,
पर ज़िंदगी की जंग में साथ उतरे हैं,
याद रहे दोनों एक ही टीम हैं,
मैं सात जन्मों तक ढाल बनूँगी,
बस तुम मुझे मत निढाल करना,
मेरे बाबा जैसा रखते थे,
वैसा ही तुम ख़याल रखना,
18. प्रस्थान
बदलकर अपनी लय निरंतर,
बह रहा है समय निरंतर,
और मैं रहूँगा टिका यहीं ,
ये भी किस अभिमान में हूँ,
समय की नदी में बहता हुआ,
मैं हर क्षण एक प्रस्थान में हूँ ,
कुछ भोग है कुछ संघर्ष भी है,
कभी वेदना है कभी हर्ष भी है,
अब विचलन नहीं परिणाम से,
मैं उम्र के उस पायदान में हूँ,
समय की नदी में बहता हुआ,
मैं हर क्षण एक प्रस्थान में हूँ,
सुख भी मिले दुःख भी रहे,
कुछ को भोगा कुछ सहे ,
कर्मयोगी का जीवन चुना,
तबसे सदा निर्वाण में हूँ ,
समय की नदी में बहता हुआ,
मैं हर क्षण एक प्रस्थान में हूँ,
उचट रहा मन स्वार्थ से,
विमुख हो रहा पुरुषार्थ से,
पर मृत्यु से अब भय नहीं,
अमरत्व के झूठे मान में हूँ,
समय की नदी में बहता हुआ,
मैं हर क्षण एक प्रस्थान में हूँ,
बाहर का शोर छट रहा है,
मन भीड़ से परे हट रहा है,
एकांत झंकृत हो उठा है ,
मौन के चिरंतन गान में हूँ,
समय की नदी में बहता हुआ,
मैं हर क्षण एक प्रस्थान में हूँ,
जीवन-मरण एक प्रक्रिया,
जो भी मिला सब दे दिया,
सब कुछ निरर्थक लग रहा,
मैं बस ईश्वर के ध्यान में हूँ,
समय की नदी में बहता हुआ,
मैं हर क्षण एक प्रस्थान में हूँ,
19. बटवारा
मेरे ज़ेहन में जब कभी भी ,
इस सवाल का शोर उठता है,
मैं सपने से भी जाग जाती हूँ
भीतर कुछ झकझोर उठता है,
कि ये बात सबसे पहले,
आख़िर किसने कहा होगा,
न जाने किस कमबख़्त का,
ये बेतुका idea रहा होगा,
कि परिवार को सँभालना,
सिर्फ़ औरतों का काम हो,
और बाहर की सारी दुनिया,
बस इन पुरुषों के नाम हो,
आधी जनसंख्या को बड़ी,
चालाकी से दरकिनार कर दिया,
ग्लोब से निकाल चौखट के,
भीतर हमारा संसार कर दिया,
ख़ूबसूरत होने के जुर्म में,
घूँघट करने का इनाम दिया,
कलम की जगह कढ़ची देकर,
चूल्हे चौके का सारा काम दिया,
प्रेम के बदले पुरुष सुरक्षा देगा,
हमको यही पाठ पढ़ाया गया,
उसकी सेवा में जीवन खपा दो,
यही फ़िल्मी गीत सुनाया गया,
प्रेम के नाम पर धीरे-धीरे हमने,
आत्मसम्मान नीलाम होने दिया,
एक पतली सी जंजीर बचाने में,
ख़ुद को पुरुषों का ग़ुलाम होने दिया,
हमने जिस पुरुष को,
ज़ना, पोषा और बड़ा किया,
उसने शक्ति, विद्या, सत्ता,
सबकुछ हमसे छीन लिया,
अगली पीढ़ी पर क्या गुज़रेगी,
शायद किसी ने सोचा भी नहीं,
तुम्हारा फ़ैसला हमे मंज़ूर है,
हमसे किसी ने पूछा भी नहीं,
बराबरी का बटवारा भी न किया,
भीतर ज़रूर कोई डर होगा,
क्या ख़ाक सुरक्षा देगा हमको,
जो मन से इतना कायर होगा,
तुम्हें बेशक ग़लतफ़हमी हो,
कि हम तुमसे डरते रहेंगे,
हमने हमेशा कोशिश की है,
और आगे भी करते रहेंगे,
अपने बेटों को अब हमें,
अपने हाथों कुछ यूँ गढ़ना होगा,
कि हमारी बेटियों को अपने,
हिस्से के लिये नहीं लड़ना होगा,
हम तुमसे जरा अलग हैं,
हमे अपने ख़्वाब बुनने दो,
एक ही माँ के जाये हैं दोनों,
हमे भी मन का जीवन चुनने दो,
हमे बाहर रहना है या घर में,
यह निर्णय सिर्फ़ हमारा होगा,
चीखकर कहेंगे हम इस बात को,
जब ये discussion दुबारा होगा,
Product Details:
- Publisher : FlyDreams Publications; First Edition (14 January 2025)
- Paperback : 134 pages
- ISBN-10 : 9391439578
- ISBN-13 : 978-9391439576
- Item Weight : 120 g
- Dimensions : 19.8 x 12.9 x 1.1 cm
- Packer : FlyDreams Publications, Delhi – 110085 | +919660035345; +919461227155
- Generic Name : Book