
About the Book
पहाड़ी बारिश
कुछ यादों ने सुकून दिया,
और कुछ यादों से डरते रहे,
अच्छी बुरी तमाम स्मृतियाँ,
उम्र बेचकर इकट्ठी करते रहे!
स्मृतियों के बिना जीवन का अस्तित्व ही क्या? आज एक साधारण-सा प्रतीत होता क्षण, वक्त गुजर जाने के बाद कब एक बेशकीमती याद बन जाये, कौन जानता है?
“गुल्लक” एक संकेत है, इंसानी स्मृतियों की जमापूंजी का। यह संकेत है इस बात का कि जीवन के क्षणिक होने की हम चाहे कितनी बात कर लें, हम हर क्षण को अपने सीने की तिजोरी में फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह संजोए रहते हैं।
हम सबका अलग जीवन, अलग कहानी, अलग स्मृतियाँ और इसलिए अलग-अलग-सा दिखता गुल्लक। मेरे इस काव्य संकलन “गुल्लक” में साल के 52 हफ्तों में चल रहे मेरे मनोभावों की स्मृतियों के सिक्के हैं। जब आप फुर्सत से पढ़ेंगे तो लगेगा कि मेरे और आपके स्मृतियों के कई सिक्के एक जैसे ही थे और तब शायद समझें कि हम सबका गुल्लक भले ही अलग दिखता हो, किंतु भीतर सिक्के लगभग एक जैसे ही होते हैं।