About the Book

‘‘सुबह का वक्त कपालभांति में गुज़ारा,

तो चाय पर पत्नी के विचार छूट गए।

कॉर्नफ्लेक्स और फ्रूट प्लेट में रखे,

तो आलू के परांठे और नींबू के अचार छूट गए।

न जिन्दगी की ये छोटी-बड़ी उलझने बदलती हैं, ना हम बदलते है। कविताएँ बस इन्हें देखने का नजरियाँ बदल देती हैं। लाख योजनाओं के बावजूद जैसे हम अस्त-व्यस्त-सी जिन्दगी जीते हैं, ठीक उसी तरह इस संग्रह की कविताएँ भी बेतरतीब विषयों पर लिखी गयी हैं। कई बार हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी बिलकुल नीरस हो जाती है, जैसे जेठ की दुपहरी में सड़क पर लावारिस पड़ा टीन का डिब्बा।


इसी जिन्दगी से निकली इन कविताओं को फुर्सत के पलों में पढ़ियेगा, क्या पता उस जेठ की नीरसता को बसंत की नजर लग जाए।

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